अमरकंटक नर्मदा महोत्सव की मंत्रमुग्ध करने वाली यात्रा का वृतांत

अमरकंटक नर्मदा महोत्सव में दिन की शुरुआत मैकल पार्क में योगाभ्यास के साथ हुई। इंदिरा गांधी जनजातीय विवि के योग शिक्षकों द्वारा बड़े ही संयमित तरीके से करवाए गए योगाभ्यास ने ताजगी के साथ दिन का प्रारंभ करवाया तो नर्मदा नदी पर ट्रैकिंग के लिये मशहूर शंभुधारा, पंचधारा, कपिलधारा, कबीर चबूतरा, धोनी पानी, सोनमुड़ा ने सैलानियों को खूब रोमांचित किया।
ट्रैकिंग का रोमांच अपनी जगह है, लेकिन नर्मदा मंदिर से सुबह 10 बजे मां नर्मदा को रथ में विराजमान कर निकाली गयी शोभा-यात्रा का आनंद अपनी जगह। यूं तो शोभा यात्रा में अमरकंटक का हर व्यक्ति, भक्ति भाव के साथ शामिल हुआ, लेकिन प्रदेश के मुखिया के शामिल हो जाने से शोभा यात्रा की भव्यता देखते ही बनती थी। यात्रा में अलग—अलग स्वांग धरे कलाकार अपने अनूठेपन से सभी को मोहित कर रहे थे। मन में श्रद्धा भाव रखे जनमानस की भीड़ मां नर्मदा मंदिर, उद्गम स्थल पर लगातार बढ़ रही थी।
मुख्यमंत्री कमलनाथ ने शोभा यात्रा के बाद पवित्र नगरी अमरकंटक में मां नर्मदा के उद्गम स्थल पर पूजा-अर्चना कर प्रदेश एवं प्रदेशवासियों की सुख-समृद्धि की कामना की। इसके बाद उन्होंने तीन दिवसीय अमरकंटक नर्मदा महोत्सव-2020 का शुभारंभ किया। इस अवसर पर प्रदेश के कई गणमान्य मंत्री, राजनेता और अधिकारी मौजूद थे।



नर्मदा माई के रूप में है पहचान 
मध्यप्रदेश में नर्मदा नदी को मां रेवा या मां नर्मदा के रूप जाना और पूजा जाता है। जिस तरह भारत में गंगा नदी को मोक्ष दायिनी नदी के रूप में लोग पूजते हैं, वैसे ही मध्यप्रदेश के रहवासी नर्मदा नदी की पौराणिक विशेषताओं और महत्व के कारण इसे माई के रूप में सम्मान देते हैं।
पर्वतराज मेखल की पुत्री रेवा विंध्य की पहाड़ी पर बसे अमरकंटक से उत्पन्न होकर पश्चिमी दिशा की ओर बढ़ती है और गुजरात से सटी खम्बात की खाड़ी में विलीन हो जाती है। अपनी इस यात्रा में नर्मदा पूरे मध्यप्रदेश को अपने जल से सींचती हुई विशिष्ट कलाओं को दिखाती हुई आगे बढ़ती है।
सामवेद का स्वरूप मानी जाती हैं मां नर्मदाभारत में चार नदियों को चार वेदों के रूप में माना गया है। गंगा को ऋग्वेद, यमुना को यजुर्वेद, सरस्वती को अथर्ववेद और नर्मदा को सामवेद। चूंकि नर्मदा ने लोक-कलाओं और शिल्प-कलाओं को पाला-पोसा हैं। ऐसे में सामवेद का रूपक नर्मदा को मिलना स्वभाविक है। अमरकंटक से भरूच की ओर बढ़ती नर्मदा का अपना ही एक रोमांचकारी इतिहास है। वस्तुत: नर्मदा का परिचय इतना विस्तृत है कि हर 5 किलोमीटर के बाद एक नई कहानी सुनने को मिल जाती है। नर्मदा की तराई में जहां कई संस्कृतियों ने स्वयं को संवारा है तो कई राजा—महाराजाओं ने इसके किनारे पर अपने प्राणों को त्यागा है। यह नर्मदा की शीतलता है कि इसके कंकर—कंकर में शंकर का वास माना जाता है और इसके कंकड़ को शिवलिंग के रूप में पूजा जाता है।
लोकनृत्यों ने बांधा समां मां नर्मदा शोभायात्रा में बड़ी संख्या में लोक कलाकार, साधु संत, श्रद्धालु और गणमान्य नागरिक भी शामिल हुए। उद्घाटन स्थल सर्किट हाउस ग्राउंड पर शाम को बैगा आदिवासी जनजातीय समूह के स्थानीय लोक कलाकारों द्वारा लोकनृत्यों की प्रस्तुतियों ने आनंद का समां बांध दिया, जिसमें गुदुम, सैला और कर्मा लोक नृत्य की प्रस्तुतियां खासी पसंद की गईं।

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