15 फरवरी: विश्व पैंगोलिन दिवस विशेष

अति लुप्तप्राय प्रजाति में शामिल पैंगोलिन को संरक्षण की जरूरत
  1. वैश्विक स्तर पर पैंगोलिन की संख्या में आई 50 से 80 प्रतिशत तक की कमी
  2. शरीर पर शल्क होने से ‘वज्रशल्क’ नाम से भी यह जाना जाता है
  3. विश्व में पहली बार मध्यप्रदेश में हुई है पैंगोलिन की रेडियो टेगिंग
  4. वर्ल्ड पैंगोलिन डे के रूप में मनाया जाता है फरवरी माह का तीसरा शनिवार
पैंगोलिन विश्व में सर्वाधिक तस्करी की जाने वाली प्रजाति है। इसे वज्रशल्क के नाम से भी जाना जाता है। स्थानीय भाषा में इसे परतदार चींटी खोर के नाम से जाना जाता है। पैंगोलिन अपने बचाव के रूप में इस परतदार कवच का उपयोग करता है। यही सुरक्षा कवच आज उसकी विलुप्ति का कारण बन गया है। पूरे विश्व में चिंताजनक रूप से पैंगोलिन की संख्या में 50 से 80 प्रतिशत की कमी आई है। इसलिय पैंगोलिन संरक्षण के प्रति लोगों में जागरूकता लाने के लिये विश्व पैंगोलिन दिवस फरवरी माह के तीसरे शनिवार में मनाया जाता है। इस साल यह 15 फरवरी को मनाया जा रहा है।
चीन और दक्षिण एशियाई देशों में कवच और मांस की भारी मांग
परम्परागत चीनी दवाईयों में इनके कवच की भारी मांग इनके शिकार का मुख्य कारण है। चीन और दक्षिण एशियाई देशों में इनके कवच और मांस की भारी मांग है। इससे वैश्विक रूप से पैंगोलिन प्रजाति की संख्या में तेजी से कमी आई है।
पैंगोलिन की आठ प्रजातियों में से दो भारत में
पैंगोलिन की आठ प्रजातियों में से एक भारतीय एवं चीनी पैंगोलिन भारत में पाए जाते हैं। चीनी पैंगोलिन उत्तर पूर्वी भारत पाये जाते हैं, जबकि भारतीय पैंगोलिन अत्यधिक शुष्क क्षेत्र, हिमालय और उत्तर पूर्वी भारत के अलावा सम्पूर्ण भारत में पाया जाता है। भारतीय पैंगोलिन भारत के अलावा श्रीलंका, बांग्लादेश और पाकिस्तान में भी पाया जाता है। दोनों प्रजातियों को वन्य-जीव (संरक्षण) अधिनियम की अनुसूची-1 में संरक्षण प्राप्त है।

भारतीय पैंगोलिन के संरक्षण के लिए मध्यप्रदेश के विशेष प्रयास
मध्यप्रदेश ने अति लुप्तप्राय प्रजाति में शामिल भारतीय पैंगोलिन के संरक्षण के लिए विशेष पहल की है। वन विभाग और वाइल्ड लाइफ कंजर्वेशन ट्रस्ट ने भारतीय पैंगोलिन की पारिस्थितिकी को समझने और उसके प्रभावी संरक्षण के लिए संयुक्त परियोजना शुरू की है। इस परियोजना में कुछ पैंगोलिन की रेडियो टेंगिग कर उनके क्रिया-कलापों, आवास स्थलों, दिनचर्या आदि का गहन अध्ययन किया जा रहा है। दो भारतीय पैंगोलिन का जंगल में सफल पुनर्वास किया गया है। रेडियो टेगिंग की मदद से इन लुप्तप्राय प्रजाति के पैंगोलिन की टेलिमेट्री के माध्यम से सतत निगरानी की जा रही हैं। इस प्रयोग से पैंगोलिन के संरक्षण और आबादी बढ़ाने में मदद मिलेगी।
एसटीएसएफ ने किया शिकार और तस्करी का खुलासा
मध्यप्रदेश की पहचान हमेशा से ही वन्य-जीव प्रबंधन में अनूठे और नये प्रयासों के लिए रही है। वन्य-प्राणी सुरक्षा के लिए प्रदेश में गठित विशिष्ट इकाई एसटीएसएफ ने सभी वन्य-प्राणी विशेषकर पैंगोलिन के अवैध शिकार और व्यापार को नियंत्रित करने के कारगर प्रयास किये हैं। एसटीएसएफ ने पिछले कुछ सालों में 11 से अधिक राज्यों में पैंगोलिन के शिकार और तस्करी में शामिल गुटों का सफलतापूर्वक खुलासा किया है।
रा​त में विचरण के कारण कम जानकारी उपलब्ध
निशाचर प्रजाति होने के कारण भारतीय पैंगोलिन के व्यवहार और पारिस्थितिकी के बारे में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है। लुप्तप्राय प्रजातियों की प्रभावशील संरक्षण योजना और विकास के लिए उनकी पारिस्थितिकी जानना अति महत्वपूर्ण है। मध्यप्रदेश में वन विभाग और वाइल्ड लाइफ कंजर्वेशन ट्रस्ट रेस्क्यू किये गये पैंगोलिन में से छह की रेडियो टेगिंग कर अध्ययन कर रहा है।इससे लुप्तप्राय प्रजाति की जनसंख्या बढ़ाने में मदद मिलेगी।

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