हिंदी कविता के दीप्तिमान कवि प्रदीप…

मध्यप्रदेश ने यूँ तो देश को हर क्षेत्र में सैंकड़ों महारथी दिये हैं, लेकिन कला के क्षेत्र में नायाब हीरों की एक अलग ही जमात यहां से ताल्लुक रखती है बीते दिनों जिस शख्सियत का जन्म दिन निकला है वह अमर गीतों के लेखन के लिये मशहूर हैं।हम बात कर रहे हैं रामचन्द्र नारायण द्विवेदी की, जिन्हें समूचा विश्व कवि प्रदीप के नाम से जानता ह। कवि प्रदीप का जन्म 6 फरवरी 1915 को मध्य प्रदेश में उज्जैन के बड़नगर कस्बे में हुआ था।ब्राह्मण कुल में जन्मे कवि प्रदीप की शुरुआती शिक्षा इंदौर के शिवाजी राव हाईस्कूल में हुई, जहां वेसातवीं कक्षा तक पढ़े इसके आगे की शिक्षा इलाहाबाद यानी आज के प्रयागराज के दारागंज हाईस्कूल में संपन्न हुई उन दिनों साहित्य का गढ़ कहे जाने वाले दारागंज से उन्होंने इण्टरमीडिएट की परीक्षा उत्तीर्ण की उन्होंने लखनऊ विश्विद्यालय से स्नातक की शिक्षा प्राप्त कर अध्यापक प्रशिक्षण पाठ्‌यक्रम में प्रवेश लिया उत्तर प्रदेश की आबोहवा का असर ऐसा रहा कि प्रदीप विद्यार्थी जीवन से ही कवितायें लिखने और काव्य पाठ करने में रुचि लेने लगे।
‘बंधन‘ फिल्म ने दिलायी पहचान
कवि प्रदीप की पहचान 1940 में रिलीज हुई फिल्म ‘बंधन’ से बनी हालांकि, वर्ष 1943 की हिट फिल्म ‘किस्मत’ के गीत “दूर हटो ऐ दुनिया वालों हिंदुस्तान हमारा है” ने उन्हें देशभक्ति गीत के रचनाकारों में अमर कर दिया।गीत को सुनकर जब लोगों में देशप्रेम उपजा तो क्रोधित ब्रिटिश सरकार ने उनकी गिरफ्तारी के आदेश दे दिये। इससे बचने के लिए कवि प्रदीप को भूमिगत भी होना पड़ा।

1700 से अधिक देशभक्ति गीत लिखे
पांच दशक के अपने पेशे में कवि प्रदीप ने 71 फिल्मों के लिए 1700 गीत लिखे। उनके देशभक्ति गीतों में, फिल्म बंधन (1940) में “चल चल रे नौजवान”, फिल्म जाग्रति (1954) में “आओ बच्चों तुम्हें दिखाएं”, “दे दी हमें आजादी बिना खड़ग ढाल” और फिल्म जय संतोषी माँ (1975) में “यहां वहां जहां तहां मत पूछो कहां-कहां” है। इस गीत को उन्होंने फिल्म के लिए स्वयं गाया भी था।

कवि प्रदीप ने हिंदी फिल्मों के लिये कई यादगार गीत भी लिखे भारत सरकार ने उन्हें सन 1997 में दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया। “आओ बच्चो तुम्हें दिखायें झाँकी हिंदुस्तान की, इस मिट्टी से तिलक करो ये धरती है बलिदान की “वंदे मातरम” जैसे देशभक्ति के गीतों को लिखने वाले कवि प्रदीप की प्रशंसा स्वयं सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ ने लखनऊ की पत्रिका माधुरी के फरवरी 1938 के अंक में लेख लिख कर की थी। निराला जी ने लिखा, “आज जितने कवियों का प्रकाश हिन्दी जगत में फैला हुआ है, उनमें ‘प्रदीप’ का अत्यंत उज्ज्वल और स्निग्ध है हिन्दी के हृदय से प्रदीप की दीपक रागिनी कोयल और पपीहे के स्वर को भी परास्त कर चुकी है। 1954 में आयी नलिनी और अजीत अभिनीत ‘नास्तिक’ फिल्म के गीत, जिसे लता मंगेशकर ने गाया था
“होने लगा है मुझ पे जवानी का अब असर
झुकी जाए नज़र
देखो छलक पड़ी है मेरे रूप की गागर
झुकी जाए नज़र हो झुकी जाए नज़र”
जैसे रूमानी गीतों को लिख कवि प्रदीप ने गीत लेखन की हर विधा में महारत हासिल कर ली थी।

11 दिसम्बर 1998 को आखिरी सांसलेने वाले कवि प्रदीप की कई कालजयी रचनाओं में से 1962 में भारत चीन युद्ध के दौरान लिखे गीत“ए मेरे वतन के लोगों” ने सम्पूर्ण देश में देशभक्ति की ज्योतिको और प्रभावित कर दिया थालता मंगेशकर की सुमधुर आवाज में यह गीत इतना प्रसिद्ध हुआ कि इसका कई भाषाओं में अनुवाद हुआ।आज भी देश का बच्चा-बच्चा इस गीत को जनता है यहाँ तक कि तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री जवाहर लाल नेहरू भी इस गीत को सुन अपने आंसू नहीं रोक पाए थे।

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